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अंबेडकर और भगत सिंह

अंबेडकर वकील थे तो भगत सिंह का केस क्यों नहीं लड़ा ? सोशल मीडिया पर अक्सर सवाल पूछा जाता है कि अंबेडकर वकील थे तो भगत सिंह का केस क्यों नहीं लड़ा? यह सवाल व्यंग, नफरत या आक्रोश अथवा जिज्ञासावश में पूछा जा सकता है। सवाल प्रथम दृष्टया उचित लगता है, परंतु अक्सर इसका मकसद दुष्प्रचार होता है। इसका सटिक जवाब जानने से पहले हमें हालातों को जानना होगा। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। यह वह दौर था जब शूद्र-अतिशूद्र या यूं कहें कि अंबेडकर जब स्कूल जाते थे तो उन्हें स्कूल के बाहर दरवाजे के पास बैठकर पढ़ाई करना पड़ता था। चूंकि भगत सिंह सिख थे तो उन्हें यह दंश झेलना नहीं पड़ा। शिक्षित होकर अंबेडकर जब नौकरी करने बड़ोदा गए तो उन्हें किराये पर होटल, धर्मशालाएं, कमरा तक नहीं मिला। जब वे सिडनम कालेज में प्रोफेसर बने तो बच्चे उनसे पढ़ने के लिए राजी नहीं हुए। ऐसे में जून 1923 से अंबेडकर ने वकालत का काम शुरू किया। उन्हें बार काउंसिल में भी बैठने के लिए जगह नहीं दी गई। अस्पृश्ता के चलते अंबेडकर को केस नहीं मिल पाते थे। एक गैर ब्राह्मण अपना केस हार जाने के बाद अंबेडकर के पास आए तो उनके केस की

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