दलित सबके लिए काटा क्यों

ठाकुर इस बात से नाराज़ है कि दलित आते-जाते उससे 'राम-राम' क्यों नहीं करता !! पंडित इस बात से नाराज़ है कि दलित आते-जाते उसे 'पाँय-लागूँ' क्यों नहीं बोलता !! बनिया इस बात से नाराज़ है कि दलित की माँ अब पाव भर आटे के लिए, उसके घर की चक्की नहीं पीसती । जमींदार इस बात से नाराज़ है कि दलित का बापू अब जूठन के लिए, भरी दुपहरी उसके खेतों में बेगार नहीं करते । पंचायत इस बात से नाराज़ है कि दलित घोड़े पर बैठकर बारात क्यों गया ! सरपंच इस बात से नाराज़ है कि पहले की तरह दलित की बहू आते ही, उसके हवेली पर क्यों नहीं गई ! दारोगा इस बात से नाराज़ है कि अब चाचा उसकी चौकी की सफ़ाई और उसकी तेल-मालिश क्यों नहीं करते ! किसी का पढ़ना और आगे बढ़ना न जाने कितनों को नाराज़ कर देता है पर ऐसी नाराज़गी से दलित क्यों और कब तक डरें? मुझे पता है कि सारे नाराज़ एक साथ एक चबूतरे पर आ खड़े हुए हैं... और इन सबके सामने दलित अकेला खड़ा है संभव है कि मार दिया जायेगा या किसी झूठे मुक़दमे में फँसाकर अंदर कर दिया जायेगा. । पर कुछ वक्त के लिए ही सही, मरने से पहले कम से कम एक बार ही सही ज़िंदा होने का सबूत दिया जाये. दलित तुम्हारी नाराज़गी की रत्ती भर भी परवाह नहीं करता... दलित तुमसे,तुम्हारी पंचायत से,तुम्हारी चौकी से, तुम्हारी गरज़,तुम्हारी गाली,तुम्हारी गोली से, किसी से रत्ती भर भी नहीं डरता! क्योंकि दलित जाग चुका है । (शानदार रचना के लिए लेखक को धन्यवाद)🇮🇳💐

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