चमार अछूत नहीं विज्ञानिक हैं
चमार (चमड़े के काम करने वाले) दुनिया के पहले वैज्ञानिक हैं, उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नजरिए से औजार बनाए और उन औजारों से उन्होंने गाय-भैंस जैसे मरे हुए जानवरों की खाल निकालने की तकनीक विकसित की!
खाल उधेड़ना एक हुनर है, एक हुनर है, बिना छेद काटे खाल उधेड़ना किताब लिखने जितना आसान नहीं है!
खाल को चमड़े में और चमड़े को सामान में बदलने की पूरी प्रक्रिया को चमार समाज ने विकसित और ईजाद किया!
खाल को चमड़े में बदलने की पूरी प्रक्रिया में 15 दिनों का समय लगा, जिसमें त्वचा को छीलने का वैज्ञानिक तमाशा शामिल था, इसे खारे पानी और पेड़ की छाल से बने रासायनिक घोल में उपचारित करना और ऐसे चार और नियमों से गुजरना!
फिर कहीं चमड़ी चमड़े में बदल जाती, तो इसी चमड़े से कपड़े, रस्सी, झोले, बाल्टियाँ आदि बनते!
लंबी यात्रा के दौरान पीने के लिए लोग इन चमड़े की थैलियों में पानी भरकर ले जाते थे, इन छोटी चमड़े की बाल्टियों का उपयोग कुओं से पानी निकालने के लिए किया जाता था!
घरों में चमड़े के बने थैलों से अनाज सुरक्षित रखा जाता था, चमड़े पर ही समाज और अर्थव्यवस्था की सारी व्यवस्था टिकी हुई थी!
चर्मकार जनजाति को पूरे सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, न केवल चर्मकार बल्कि अन्य जनजातियाँ भी जो कृषि उत्पादन और परिश्रम से जुड़ी थीं, उन्हें सम्मान मिला!
यह उस समय की बात है जब ब्राह्मण पंजाब की नदियों को पार नहीं करते थे !
ब्राह्मण राज्य ब्राह्मण धर्म ब्राह्मण वैदिक सभ्यता ने न केवल चर्मकार बल्कि हर उस व्यक्ति को घोषित किया जो किसी न किसी खेती या मजदूर पेशे से जुड़ा था!
जय चामकार जय चमार
तुम थे और हम हैं !
#जयभीम #SKG #मेरीकविता ✍
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