छुआछूत जयभीम
*1595*
*~~~है छुआछूत इसलिए यही~~~*
*~~~~सबका पानी भर पायेंगे~~~~*
*अपना अपना आवारा पन,
अपनी अपनी तन्हाई हेै।*
*सब अपने अपने घर में थे,
फिर किसने आग लगाई है ?*
वो खेल खिलायेंगे जितने,
हम रोज खेलते जायेंगे।
संकट के जो भी बादल हैं,
हम खूब झेलते जायेंगे।
*बिकने वालों के दाम यहाँ,
अब औने पौने होते हैं।*
*वे सब डूबे अय्यासी में,
अब रोज बिछौने होते हैं।*
नफरत की आग जला कर के,
नौकरियों से भटकाते हैं।
ये फिल्में केवल माध्यम हैं,
वे रोज फकीर बनाते हैं।
*शेैतान खून में दौड़ रहा,
दायरा सोचने का कम है।*
*जो लोग धर्म निरपेक्ष,
देखना है उनमें कितना दम है।*
*हैं मूल निवासी उठे अभी,
ली नहीं अभी अँगड़ाई है।*
*अपना अपना आवारा पन,
अपनी अपनी तन्हाई हेै।*
*सब अपने अपने घर में थे,
फिर किसने आग लगाई है ?*
है हालत वही सवर्णों की,
जो मुगलों के शासन में थी।
ये आज यहाँ राशन पर हैं,
पहले भी ये राशन में थी।
*जो कट्टर हिन्दू बने हुये,
सब अपनों से छल करते हैं।*
*हैं पढ़े लिखे पर बिना नौकरी,
औरों का जल भरते हैं।*
बोतल का पानी पिला रहे,
होटल में बड़े करीने से।
घर वालों को कुछ पता नहीं,
हैं बाहर कई महीने से।
*नौकरियों का तो टोटा है,
फिर यही काम कर पायेंगे।*
*है छुआछूत इसलिए यही,
सबका पानी भर पायेंगे।*
*देखो अब फिर से शीशे की,
बोतल हँस कर टकरायी है।*
*अपना अपना आवारा पन,
अपनी अपनी तन्हाई हेै।*
*सब अपने अपने घर में थे,
फिर किसने आग लगाई है ?*
वे पढ़े नर्सरी की कक्षा,
बस्तों का बोझ लिये आये।
था समय नहीं कुछ शेष,
नहीं ग्रन्थों की भाषा पढ़ पाये।
*सामाजिक ज्ञान नहीं कुछ भी,
पिछलग्गू बन कर साथ लगे।*
*बे दखल किया नौकरियों से,
अंधे भक्तों के हाथ लगे।*
पट कथा लिखी है पहले से,
सब माहिर हैं भटकाने में।
सत्ता का एेसा रंग चढ़ा,
हैं लगे हुये हड़काने में।
*दोजख होता है कहाँ,
वहीं पर सारे डाले जायेंगे ?*
*कुछ समय बीतने दो ये सब,
कुत्तों से पाले जायेंगे।*
*ऊपर खाने कुछ नहीं बात,
अब अन्दर तक गरमाई है।*
*अपना अपना आवारा पन,
अपनी अपनी तन्हाई हेै।*
*सब अपने अपने घर में थे,
फिर किसने आग लगाई है ?*
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दिनांक : 15.06.2022
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