अशोक सम्राट भारत का राजा

 

सम्राट अशोक ही चक्रवर्ती महाबली सम्राट अशोक है।


भारत के महान ऐतिहासिक शासक सम्राट अशोक की हस्ती मिटाने के लिए पुराणकथाएं लिखी गई है।


सम्राट अशोक भारत का चमकदार सितारा है ऐसा विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार एच. जी. वेल्स ने कहा है। केवल अशोक ही समस्त विश्व का एकमात्र ऐसा सम्राट है जिन्होंने दो दो बार दुनिया को जित लिया था- एक बार शस्त्र के बल पर और दूसरी बार धम्म के बल पर!! इसलिए, उन्हें "महाबली सम्राट" कहा जाता था।


पुराणों में जिस बलि या बलिराजा का जिक्र किया गया है, वह कोई और नहीं बल्कि सम्राट अशोक ही है। धम्म से प्रेरित होकर अशोक एक मानवतावादी और समतावादी "संविभागी बलिराजा" बन गए थे। धम्म में सबसे महत्वपूर्ण पारमिता है दान पारमिता। धम्म से प्रेरित होकर सम्राट अशोक इतने दानशूर राजा बन गए थे कि, उन्होंने अपना संपूर्ण साम्राज्य बौद्ध भिक्खुसंघ को दान में दिया था। इसी घटना को वामन पुराण में ऐसा बताया गया है कि, महाबलि राजा ने अपना संपुर्ण साम्राज्य वामन को दान में दिया था। लेकिन, दान की विधि पूरी होने पर भिक्खु संघ ने उनका साम्राज्य वापिस लौटा दिया था|क्योंकि संघ को साम्राज्य की जरूरत नहीं थी, केवल सम्राट के सहयोग की जरूरत थी। लेकिन इस वास्तविक ऐतिहासिक घटना को विकृत रूप में पेश करने के लिए और सम्राट अशोक का अपमान करने के लिए पुराणकारों ने यह लिखकर रखा की बटु वामन ने बलि राजा का संपुर्ण राज्य दान में पाकर हडप लिया और पराजित बलि को पाताल में भेज दिया| दान करनेवाला महाबली सम्राट केवल दान देने से कैसे हार सकता है? अगर वह दान दे सकता है, तो अपने शस्त्र के बल पर दुष्ट व्यक्ति को दिया हुआ दान छिन भी सकता है| यह सीधी बात हमारे बहुजनों को समझ नहीं आती और अज्ञानी लोगों की तरह पढ़े लिखे लोग भी इन काल्पनिक पुराणकथाओं को सच मानकर चल रहें हैं| वास्तव यह है कि, बलि-वामन कथा को पेश करनेवाले वामन पुराण को 8-9 वी सदीं में सम्राट अशोक के लगभग 1200 साल बाद लिखा गया है| 


सम्राट अशोक की दानशूरता को भुलाने के लिए महाभारत में कर्ण को दानशूर बताया गया है। सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध की यादें मिटाने के लिए रामायण, महाभारत जैसी युद्धकथाएं लिखी गई है।


बुद्धगया में तथागत बुद्ध की याद में उनके पदचिन्हों की (बुद्धपाद) की पूजा की जाती थी। सम्राट अशोक ने गया के पदचिन्हों की तरह दुनियाभर में बुद्ध के प्रतिपद तीन जगहों पर तिन विभिन्न स्तूपों में स्थापित कर दिए थे। दुनिया के तिनों दिशाओं में यह तीन स्थान इतने महत्वपूर्ण बन गए थे कि, दुनियाभर के लोग बुद्ध के अनुयायी बन गये और इस तरह बुद्ध के तीन चरणपदों में सम्राट अशोक ने संपुर्ण दुनिया को जीत लिया था। इस सत्य को मिटाने के लिए वामन पुराण में यह बताया गया कि, वामन ने तीन चरणपदों में दुनिया को जीत लिया और बलि को निचे पाताल में ढकेल दिया। इसका मतलब यह है कि, विजेता अशोक को ही यहां पराजित बलि के रूप में दिखाया गया है और उनके जीत को अर्थात धम्मविजय को बलि-वामन कथा में पराजय के रूप में पेश किया गया है। यह है इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला!!! और ऐसे ऐतिहासिक घोटाले पुराणकथाओं के हर एक पेज पर आपको मिलेंगे!!!


सम्राट अशोक अपने जीवन में कभी भी नहीं हारे थे। लेकिन काल्पनिक कथा में उलझकर हमारे लोग उन्हें हारे हुए बलिराजा के रूप में देख रहे हैं। इससे हमारी हारी हुई मानसिकता बन रहीं हैं। हम हारे हुए, कमजोर और गुलाम लोग है और हारे हुए बलिराजा के हम वंशज है, तथा हम हारे हुए लोगों का कोई उत्सव नहीं हो सकता, इस तरह की हमारी हारी हुई मानसिकता बनाने का काम पुराणकथाओं ने किया है। इन काल्पनिक पुराणकथाओं को ऐतिहासिक मानकर हमारे लोग भी अप्रत्यक्ष रूप में ब्राम्हणवाद को विजेता बना रहे हैं और हमारे पुरखों को पराजित बताकर उनका अपमान कर रहे हैं|


वास्तविक इतिहास बिलकुल अलग है। हम हारे हुए लोग नहीं है, बल्कि हम विजेता लोग हैं, हम सम्राटों के सम्राट है। सम्राट अशोक, सम्राट कनिष्क, सम्राट सातवाहन, वाकाटक सम्राट, सम्राट हर्षवर्धन, सम्राट धर्मपाल, सम्राट यशोवर्मन जैसे एक से बढ़कर एक बौद्ध सम्राट भारत में होकर गए हैं, जो हमारे महान पुरखें थे| इसलिए, काल्पनिक पुराणकथाओं को छोडो और वास्तविकता इतिहास का सामना करो। बलि को छोडो और अशोक को मानो, क्योंकि बलिराजा ही वास्तव में सम्राट अशोक है।


-- डा. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क

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