गुलामगीरी-३

 गुलामगिरी। भाग 1। ब्राह्मणवादी धर्म की छत्रच्छाया में


गुलामगीरी


[जोतीराव और धोंडीराव-संवाद]


परिच्छेद : एक


[ब्रह्मा की व्युत्पत्ति, सरस्वती और इराणी या आर्य लोगों के संबंध में।]


धोंडीराव : पश्चिमी देशों में अंग्रेज, फ्रेंच आदि दयालु, सभ्य राज्यकर्ताओं ने इकट्ठा हो कर गुलामी प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी है। इसका मतलब यह है कि उन्होंने ब्रह्मा के (धर्म) नीति-नियमों को ठुकरा दिया है। क्योंकि मनुसंहिता में लिखा गया है कि ब्रह्मा (विराट पुरुष) ने अपने मुँह से ब्राह्मण वर्ण को पैदा किया है और उसने इन ब्राह्मणों की सेवा (गुलामी) करने की लिए ही अपने पाँव से शूद्रों को पैदा किया है।


जोतीराव : अंग्रेज आदि सरकारों ने गुलामी प्रथा पर पाबंदी लगा दी है, इसका मतलब ही यह है कि उन्होंने ब्रह्मा की आज्ञा को ठुकरा दिया है, यही तुम्हारा कहना है न! इस दुनिया में अंग्रेज आदि कई प्रकार के लोग रहते हैं, उनको ब्रह्मा ने अपनी कौन-कौन सी इंद्रियों से पैदा किया है और इस संबंध में मनुसंहिता में क्या-क्या लिखा गया है?


धोंडीराव : इसके संबंध में सभी ब्राह्मण, मतलब बुद्धिमान और बुद्धिहीन यह जवाब देते हैं कि अंग्रेज आदि लोगों के अधम, दुराचारी होने की वजह से उन लोगों से बारे में मनुसंहिता में कुछ भी लिखा नहीं गया।


जोतीराव : तुम्हारे इस तरह के कहने से यह पता चलता है कि ब्राह्मणों में अधम, नीच, दुष्ट, दुराचारी लोग बिलकुल है ही नहीं?


धोडींराव: अनुभव से यह पता चलता है कि अन्य जातियों की तुलना में ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा अधम, नीच, दुष्ट और दुराचारी लोग हैं।


जोतीराव : फिर यह बताओ के इस तरह के अधम, नीच, दुष्ट, ब्राह्मणों के बारे में मनु की संहिता मे किस प्रकार से लिखा गया है?


धोंडीराव : इस बात से यह प्रमाणित होता है कि मनु ने अपनी संहिता में जो व्युत्पत्ति सिद्धांत प्रतिपादित किया है, वह एकदम तथ्यहीन, निराधार है; क्योंकि वह सिद्धांत सभी मानव समाज पर लागू नहीं होता।


जोतीराव : इसीलिए अंग्रेज आदि लोगों के जानकारों ने ब्राह्मण ग्रंथकारों की बदमाशी को पहचान कर गुलाम बनाने की प्रथा पर कानूनन पाबंदी लगा दी। यदि यह ब्रह्मा तमाम मानव समाज की व्युत्पत्ति के लिए सही में कारण होता तो उन्होंने गुलामी प्रथा पर पाबंदी ही नहीं लगाई होती। मनु ने चार वर्णों की उत्पत्ति लिखी है। यदि इस व्युत्पत्ति को कुल मिला कर सभी सृष्टि-क्रमों से तुलना करके देखा जाए तो वह तुमको पूरी तरह तथ्यहीन, निराधार ही दिखाई देगी।


धोंडीराव : मतलब, यह किस प्रकार से?


जोतीराव : ब्राह्मणों का कहना है ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से पैदा हुए लेकिन कुल मिला कर सभी ब्राह्मणों की आदिमाता ब्राह्मणी ब्रह्मा के किस अंग से उत्पन्न हुई, इसके बारे में मनु ने अपनी संहिता में कुछ भी नही लिख रखा है। आखिर ऐसा क्यों?


धोंडीराव : क्योंकि वह उन विद्वान ब्राह्मणों के कहने के अनुसार मूर्ख दुराचारी होगी। इसलिए फिलहाल उसे म्लेच्छया [3] विधर्मियों की पंक्ति में रख दिया जाए।


जोतीराव : हम भूदेव हैं, हम सभी वर्णों में श्रेष्ठ हैं, यह हमेशा बड़े गर्व से कहनेवाले इन ब्राह्मणों को जन्म देनेवाली आदिमाता ब्राह्मणी ही है न? फिर तुम उसको म्लेच्छों की पंक्ति में किसलिए रखते हो? उसको वहाँ की शराब और मांस की बदबू कैसे पसंद आएगी? बेटे, तू यह बड़ी गलत बात कर रहा है।


धोंडीराव : आपने ही कई बार सरेआम सभाओं में, व्याख्यानों में कहा है कि ब्राह्मणों के आदिवंशज जो ऋषि थे, वे श्राद्ध [4] के बहाने गौ की हत्या करके गाय के मांस से कई प्रकार के पदार्थ बनवा करके खाते थे। और अब आप कहते है कि उनकी आदिमाता को बदबू आएगी, इसका मतलब क्या है? आप अंग्रेजी राज के दीर्घजीवी होने की कामना कीजिए, और कुछ दिन के लिए रूक जाइए। तब आपको दिखाई देगा कि आज के अधिकांश मांगलिक[5] भिक्षुक ब्राह्मण इस तरह का प्रयास करेंगे कि रेसिडेंट, गर्वनर आदि अधिकारियों की उन पर ज्यादा-से-ज्यादा मेहरबानी हो, इसलिए ये ब्राह्मण उनकी मेज पर के बचे-खुचे गोश्त के टुकड़े बुटेलर[6] ब्राह्मणों के नाम से अंदर-ही-अंदर फुसफुसाने लगे हैं? मनु महाराज ने आदिब्राह्मणी की व्युत्पत्ति के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है। इसलिए इस दोष की सारी जिम्मेदारी उसी के सिर पर डाल दीजिए। उसके बारे में आप मुझे क्यों दोष दे रहे हैं कि मैं गलत-सलत बोल रहा हूँ? छोड़िए इन बातों को, आगे बताइए।


जोतीराव : अच्छा, जैसी तुम्हारी इच्छा, वही सच क्यों ना हो। अब ब्राह्मण को पैदा करनेवाले ब्रह्मा का जो मुँह है, वह हर माह मासिक धर्म (माहवार) आने पर तीन-चार दिन के लिए अपवित्र (बहिष्कृत) होता था या लिंगायत [7] नारियों की तरह भस्म लगा कर पवित्र (शुद्ध) हो कर घर के काम-धंधे में लग जाता था, इस बारे में मनु ने कुछ लिखा भी है या नहीं?


धोंडीराव : नहीं। किंतु  ब्राह्मणों की उत्पत्ति का आदि कारण ब्रम्हा ही है। और उसको लिंगायत नारी का उपदेश कैसे उचित लगा होगा? क्योंकि आज के ब्राह्मण लोग लिंगायतों से इसलिए घृणा करते हैं क्योंकि वे इसमें छुआछूत नहीं मानते।


जोतीराव : इससे तुम सोच ही सकते हो कि ब्राह्मण का मुँह, बाँहें, जाँघे और पाँव - इन चार अंगों की योनि, माहवार (रजस्वला) के कारण, उसको कुल मिला कर सोलह दिन के अशुद्ध हो कर दूर-दूर रहना पड़ता होगा। फिर सवाल उठता है कि उसके घर का काम-धंधा कौन करता होगा? क्या मनु महाराज ने अपनी मनुस्मृति में इसके संबंध में कुछ लिखा भी है या नहीं?


धोंडीराव : नहीं।


जोतीराव : अच्छा। वह गर्भ ब्रह्मा के मुँह में जिस दिन से ठहरा, उस दिन से ले कर नौ महीने बीतने तक किस जगह पर रह कर बढ़ता रहा, इस बारे में मनु ने कुछ कहा भी है या नही?


धोंडीराव : नहीं।


जोतीराव : अच्छा। फिर जब यह ब्राह्मण बालक पैदा हुआ, उस नवजात शिशु को ब्रह्मा ने अपने स्तन का दूध पिला कर छोटे से बड़ा किया, इस बारे में भी मनु महाराज ने कुछ लिखा है या नहीं?


धोंडीराव : नहीं।


जोतीराव : सावित्री ब्रह्मा की औरत होने पर भी उसने उस नवजात शिशु के गर्भ का बोझ अपने मुँह में नौ महीने तक सँभाल कर रखने, उसे जन्म देने और उस की देखभाल करने का झमेला अपने माथे पर क्यों ले लिया? यह कितना बड़ा आश्चर्य है!


धोंडीराव : उसके (ब्रह्मा के) शेष तीन सिर उस झमेले से दूर थे या नहीं? आपकी राय इस मामले में क्या है? उस रंडीबाज को इस तरह से माँ बनने की इच्छा क्यों पैदा हुई होगी?


जोतीराव : अब यदि उसे रंडीबाज कहा जाए तो उसने सरस्वती नाम की अपनी कन्या से ही संभोग (व्यभिचार) किया था। इसीलिए उसका उपनाम बेटीचोद हो गया है। इसी बुरे कर्म के कारण कोई भी व्यक्ति उसका मान-सम्मान (पूजा) नहीं कर रहा है।


धोंडीराव : यदि सचमुच में ब्रह्मा को चार मुँह होते तो उसी हिसाब से उसे आठ स्तन, चार नाभियाँ, चार योनियाँ और चार मलद्वार होने चाहिए। किंतु इस बारे में सही जानकारी देनेवाला कोई लिखित प्रमाण नहीं मिल पाया है। फिर, उसी तरह शेषनाग की शैया पर सोनेवाले को, लक्ष्मी नाम की स्त्री होने पर भी, उसने अपनी नाभि से चार मुँहवाले बच्चे को कैसे पैदा किया? इस बारे में यदि सोचा जाए तो उसकी भी स्थिति ब्रह्मा की तरह ही होगी।


जोतीराव : वास्तव में, हर दृष्टि से सोचने के बाद हम इस निर्णय पर पहुँचते है कि ब्राह्मण लोग समुद्रपार जो इराण नाम का देश है, वहाँ के मूल निवासी है। पहले जमाने में उन्हें इराणी या आर्य कहा जाता था। इस मत का प्रतिपादन कई अंग्रेजी ग्रंथकारों ने उन्हीं के ग्रंथों के आधार पर किया है। सबसे पहले उन आर्य लोगों ने बड़ी-बड़ी टोलियाँ बना करके देश में आ कर कई बर्बर हमले किए। यहाँ के मूल निवासी राजाओं के प्रदेशों पर बार-बार हमले करके बड़ा आतंक फैलाया। फिर (बटू) वामन के बाद आर्य (ब्राह्मण) लोगों का ब्रह्मा नाम का मुख्य अधिकारी हुआ। उसका स्वभाव बहुत जिद्दी था। उसने अपने काल में यहाँ के हमारे आदिपूर्वजों को अपने बर्बर हमलों में पराजित कर उन्हें अपना गुलाम बनाया। बाद में उसने अपने लोग और इन गुलामों में हमेशा-हमेशा के लिए भेद-भाव बना रहे, इसलिए कई प्रकार के नीति नियम बनवाए। इन सभी घटनाओं की वजह से ब्रह्मा की मृत्यु के बाद आर्य लोगों का मूल नाम अपने-आप लुप्त हो गया और उनका नया नाम पड़ गया 'ब्राह्मण'।


फिर मनु महाराज जैसे (ब्राह्मण) अधिकारी हुए। पहले से बने हुए और अपने बनाए हुए नीति-नियमों का क्षय बाद में कोई न कर पाए, इस डर की वजह से उसने ब्रह्मा के बारे में नई नई तरह की कल्पनाएँ फैलाई। फिर उसने इस तरह के विचार उन गुलाम लोगों के दिलों-दिमाग में ठूँस-ठूँस कर भर दिए कि ये बातें ईश्वर की इच्छा से हुई हैं। फिर उसने शेषनाग शैया की दूसरी अंधी कथा (पुराण कथा) गढ़ी और समय देख कर, कुछ समय के बाद, उन सभी पाखंडों के ग्रंथशास्त्र बनाए गए। उन ग्रंथों के बारे में शूद्र गुलामों को नारद जैसे धूर्त, चतुर, सदा औरतों में रहनेवाले छ्छोरे के ताली पीट-पीट कर उपदेश करने की वजह से यूँ ही ब्रह्मा का महत्व बढ़ गया। अब हम इस ब्रह्मा के बारे में, शेषनाग शैया करनेवाले के बारे में खोज करने लगें तो उससे हमें छदाम का फायदा तो होगा नहीं क्योंकि उसने जान बूझ कर उस बेचारे को सीधा लेटा हुआ देख कर उसकी नाभि से यह चार मुँहवाले बच्चे को पैदा करवाया। मुझे ऐसा लगता है कि पहले से ही औंधाचित हुए गरीब पर ऊपर से पाँव देना, इसमें अब कुछ मजा नहीं है।


[3]


अनार्य, वह मानव-समाज, जो ब्राह्मणों के चातुर्वर्ण्य समाज से बाहर का है।


[4]


हिंदुओं में (ब्राह्मणों में) पितरों के सम्मान और उनकी तृप्ति के लिए शास्त्र के अनुसार या धार्मिक रस्म-रिवाजों के अनुसार किया जानेवाला धार्मिक अनुष्ठान, जैसे-तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मणों  को भोजन कराना। यह श्राद्ध सांस्कृतिक परंपरा नही, बल्कि हिंदुओं की धार्मिक विधि है। इसका प्रारंभ ब्राह्मण-पुरोहितों ने अपने स्वार्थ के लिए किया था।


[5]


मांगलिक − मराठी में इसके लिए, 'सोंवळे ओवळे' शब्द का प्रयोग किया जाता है।


[6]


बुटेलर - अंग्रेजों के घर में खाना पकानेवाला - खानसामा।


[7]


लिंगायत - एक शैव संप्रदाय, जिसका प्रसार दक्षिण भारत में हुआ,  है।


परिच्छेद : दो


[मत्स्य और शंखासुर के संबंध में]


धोंडीराव : इस देश में (बटू) वामन के पहले इराण से आर्य लोगों के कुल मिला कर कितने जत्थे आए होगें?


जोतीराव : इस देश में आर्य लोगों के कई जत्थे जलमार्ग से आए।


धोंडीराव : उनमें से पहला जत्था जलमार्ग से लड़ाकू नौका से आया था या किसी और मार्ग से?


जोतीराव : लड़ाकू नौकाएँ उस काल में नहीं थी। इसलिए वे जत्थे छोटी-छोटी नौकाओं पर आए थे और वे नौकाएँ मछ्लियों की तरह तेजी से पानी के ऊपर चलती थीं। इसलिए उस जत्थे के अधिकारी का उपनाम मत्स्य हो गया होगा।


धोंडीराव : फिर ब्राह्मण इतिहासकारों ने भागवत आदि ग्रंथों में इस तरह लिखा है कि उस जत्थे का मुखिया मत्स्य से पैदा हुआ था, इसका क्या मतलब होगा?


जोतीराव : उसके बारे में तुम ही सोचो कि मनुष्य और मछली इनके इंद्रियों में, आहार में, निद्रा में, मैथुन में और पैदा होने की प्रकिया में कितना अंतर है? उसी प्रकार उनके मस्तिष्क में, मेधा में, कलेजे में, फेंफड़े में, अंतडियों में, गर्भ पालने-पोसने की जगह में और प्रसूति होने के मार्ग में कितना चमत्कारिक अंतर है। मनुष्य जमीन पर रह कर अपनी जिंदगी बसर करनेवाला प्राणी है। वह जरा-सी असावधानी से पानी में गिरने पर तैरना न आए तो डूब कर मर जाता है; किंतु मछली हमेशा ही पानी में रहती है। लेकिन मछली को पानी से बाहर निकाल कर जमीन पर रखते ही तिलमिला कर मर जाती है। नारी स्वाभाविक रूप में एक समय एक ही बच्चे को जन्म देती है। लेकिन मछली सबसे पहले कई अंडे देती है। उसके कुछ दिनों बाद उन अंडों को फोड़ कर उसमें से अपने सभी बच्चों को बाहर निकालती है। अब जिस अंडे में यह मत्स्य-बालक था, उसको उसने पानी से बाहर निकाल कर जमीन पर फोड़ा होगा उस अंडे से उसने उस मत्स्य-बालक को बाहर निकाला होगा। यदि यह कहा जाए, तो उस मछली की जान पानी से बाहर जमीन पर कैसे बची होगी? कोई आदमी इस तरह का सवाल उठा सकता है कि मनुष्यों में से किसी मँजे हुए गोताखोर ने पानी के अंदर गहरी डुबकी लगा कर मत्स्य-बालक जिस अंडे में था, उस अंडे को पहचान कर उसने उसको जमीन पर लाया होगा। खैर, यह भी सच मान लीजिए। लेकिन बाद में किस चतुर मर्द ने मछ्ली के उस अंडे को फोड़ कर उसमें से उस मत्स्य-बालक को बाहर निकाला होगा, क्योंकि यूरोप और अमेरिकी देशों में काफी विकास हुआ है और बड़े-बड़े ख्यातिप्राप्त विद्वान चिकित्साशास्त्र में विज्ञ हुए हैं, फिर भी उनमें से किसी एक ने भी अपनी छाती पर हाथ रख कर यह दावा नहीं किया है कि मैं मछ्ली के अंडे को फोड़ करके उसमें से बच्चे को जिंदा बाहर निकाल देता हूँ। खैर, वह अंडा पानी में है, इस तरह का महत्वपूर्ण संदेश किस अमर मछली ने पानी से बाहर आ कर उस गोताखोर को बताया होगा और उस जलचर संदेशवाहक की भाषा मानव को कैसे समझ में आई होगी? इस प्रकार की एक से अधिक शंकाओं से भरे उन लेखों में से सही समाधान होना बिलकुल असंभव है। इसलिए उसके बारे में यह अनुमान प्रमाणित होता है कि, बाद में कुछ मूर्ख लोगों ने मौका मिलते ही अपने प्राचीन ग्रंथों में इस तरह की काल्पनिक कथाओं को घुसेड़ दिया होगा।


धोंडीराव : अच्छा, फिर सवाल यह उठता है कि उस जत्थे का नायक अपने लोगों से साथ किस जगह पर आ कर रूका होगा?


जोतीराव : पश्चिम के समुद्र को पार करते हुए वह एक बंदरगाह पर उतरा।


धोंडीराव : उस बंदरगाह पर उतरने के बाद उसने क्या किया?


जोतीराव : उसने शंखासुर नाम के क्षेत्रपति को जान से मार डाला और उसके राज्य को छीन लिया। बाद में शंखासुर का वह राज्य मत्स्य के मरते ही शंखासुर के लोगों ने अपना राज्य वापस लेने के उद्देश्य से मत्स्य के कबीले पर बड़ा ही खतरनाक हमला बोल दिया।


धोंडीराव : बाद में इस खतरनाक हमले का क्या परिणाम हुआ?


जोतीराव : उस करारी हमले में मत्स्य के कबीले की करारी हार हुई। इसलिए उसने युद्धभूमि से ही भाग जाना बेहतर समझा और भाग निकला। बाद में शंखासुर के लोगों द्वारा उसका पीछा करने की वजह से वह अंत में किसी पहाड़ी पर जा कर घने जंगल में छुप गया। उसी समय इराण से आर्य लोगों का दूसरा एक बड़ा कबीला कचवे से बंदरगाह पर आ पहुँचा और वे कचवे मछवे से कुछ बड़े होने की वजह से पानी पर कछुए की तरह धीरे-धीरे चल रहे थे। इसी की वजह से उस कबीले के मुखिया का उपनाम कच्छ हो गया।


परिच्छेद : तीन


[कच्छ, भूदेव,भूपति, क्षत्रिय, द्विज और कश्यप राजा के संबंध में]


धोंडीराव : मछली और कछुवा, इन सभी बातों में तुलना करने पर कुछ बातों में निश्चित रूप से फर्क दिखाई पड़ता है। लेकिन कुछ बातों में जैसे पानी में रहना, अंडे देना, उन्हें फोड़ना आदि में उनमें समानता भी दिखाई देती है। इसलिए भागवत आदि पुराणकर्ताओं ने यह लिख रखी है कि कच्छ कछुए से पैदा हुआ है। इसके बारे में भी सोचने पर परिणाम मत्स्य जैसा ही होगा और अपना सारा समय व्यर्थ में खर्च होगा, ऐसा मुझे लगता है। इसलिए मैं आपसे आगे की बात पूछना चाहता हूँ कि कच्छ ने बंदरगाह पर उतरने के बाद क्या किया?


जोतीराव : सबसे पहले उस बंदरगाह की जिस पहाड़ी पर मस्यों का कबीला मुसीबत में पड़ गया था, वहाँ के मूल क्षेत्रवासी लोगों को भगा कर उसने अपने लोगों को मुक्त किया और वह स्वयं उस क्षेत्र का भूदेव यानी भूपति बन गया।


धोंडीराव : फिर जिनको कच्छ ने खदेड़ा था, वे क्षत्रिय लोग किस ओर चले गए?


जोतीराव : विदेशी इराणी या आर्य लोगों का कबीला समुद्र के रास्ते से आया देख कर, घबरा कर 'द्विज आए' चिल्लाते हुए पहाड़ी के उस पार कश्यप नाम के क्षेत्रपति के पीछे-पीछे निकल पड़े। कच्छ ने उनको इस तरह पीछे-पीछे जाते हुए देख कर अपने साथ कुछ फौज ले कर उस पहाड़ी के एक छोर से नीचे उतरा। उसने उस पहाड़ी को पीठ पर ले कर, मतलब पीछे छोड़ कर कश्यप के राज्य के क्षत्रियों को इराण की मदद से कष्ट देने लगा। बाद में कश्यप ने उस पहाड़ी को कच्छ से वापस लेने के इरादे से जंग की तैयारी की, लेकिन कच्छे ने अपनी मृत्यु तक उस पहाड़ी को उस क्षेत्रपति के हाथ नहीं लगने दिया और अपनी युद्धभूमि छोड़ कर एक कदम पीछे भी नहीं हटा।


परिच्छेद : चार


[वराह और हिरण्यगर्भ के संबंध में।]


धोंडीराव : कच्छ के मरने के बाद द्विजों का मुखिया कौन हुआ?


जोतीराव : वराह।


धोंडीराव : भागवत आदि इतिहासकारों ने यह लिख कर रखा है कि वराह की पैदाइश सुअर से हुई है। इसमें आपकी क्या मान्यता है?


जोतीराव : वास्तव में सही बात यह हैं कि मनुष्य और सुअर में किसी भी दृष्टि से चमत्कारिक भिन्नता है। अपनी बात को अधिक स्पष्ट करने के लिए और तुम्हारा पूरा समाधान हो, इसलिए यहाँ उदाहरण के तौर पर सिर्फ एक ही बात कहना चाहता हूँ कि वे अपने बच्चों को पैदा करने के बाद उनके किस तरह का व्यवहार करते हैं, यही सिर्फ हमें देखना है। मनुष्य जाति की नारी अपने बच्चों को पैदा करते ही वह उस बच्चे को किसी भी तरह का कष्ट नहीं होने देती और उसे बडे प्यार से पालती-पोसती है। लेकिन सुअरी कुतिया की तरह अपने पैदा किए पहले बच्चे को एकदम खा लेती है। उसके बाद दूसरे बच्चे को पैदा करती है। इससे यह सिद्ध होता है कि वरह कि सुअरी माता ने सबसे पहले अपने सुअर जाति के बच्चे को खा कर बाद में उस मानव सुअर को पैदा किया होगा। किंतु भागवत आदि ग्रंथकारों के अनुसार, वराह यदि आदिनारायण का अवतार है तो उसकी सर्वज्ञता और समान दृष्टि को दाग लगा या नहीं? क्योंकि वराह आदिनारायण का अवतार होने की वजह से, उसको पैदा करनेवाली सुअरी को उसके बड़े सुअर भाई को मार कर नहीं खाना चाहिए। उसने इसके पहले से ही कुछ बंदोबस्त क्यों नहीं करके रखा था? हाय! पद्मा सुअरी वराह आदिनारायण की माँ ही तो है न! और उसने इस तरह से अपने नन्हे-मुन्ने अबोध बालक की हत्या क्यों की? 'बालहत्या' शब्द का अर्थ सिर्फ बच्चों को जान से मारना ही होता है, फिर वह बच्चा किसी का भी क्यों न हो। किंतु इसने अपने पैदा किए हुए अबोध बच्चे की ही हत्या करके उसको खा लिया। इस तरह के अन्याय का अच्छा अर्थबोध हो, ऐसा शब्द किसी शब्दकोश में खोजने से भी नहीं मिलेगा। यदि इसको डाकिनी कहा जाए तो डाकिनी भी अपने बच्चों को नहीं खाती, यह एक पुरानी कहावत है। उस वराह की पद्मा माता को इस तरह का अघोर कर्म करने की वजह से नरक की यातनाएँ भोगने से मुक्ति मिले, इसलिए उसने ऐसा पाप मुक्ति का कर्म किया, इसका कहीं कोई जिक्र भी नही मिलता, इसका हमें बड़ा अफसोस है।


धोंडीराव : वराह की सुअरी माता का नाम यदि पद्मा था तो इससे यह सिद्ध होता है कि उसके सुअर पति का कुछ ना कुछ नाम होना ही चाहिए कि नहीं?


जोतीराव : पद्मा सुअरी के पति का नाम ब्रह्मा था।


धोंडीराव : इससे यही समझ में आ रहा है कि प्राचीन काल में जानवर मनुष्यों की तरह आपस में एक दूसरे को ब्रह्मा, नारद और मनु, इस तरह के नाम देते थे। उनके नाम इन गपोड़ी ग्रंथकारों को कैसे समझ में आए होंगे? दूसरी बात यह कि पद्मा सुअरी ने वराह को उसके बचपन में अपने स्तन से दूध पिलाया ही होगा, इसमें कोई संदेह नहीं। किंतु बाद में उसके कुछ बड़ा होने पर गाँव के खंड़हरों में बहुत ही कोमल फूल पौधों का चारा चरने की उसे आदत लगी होगी कि नहीं, यह तो वही वराह आदिनारायण ही जाने। इस तरह से उनके (‌धर्म) ग्रंथों में कई तरह के महत्वपूर्ण सवालों के प्रमाण नहीं मिलते। इसलिए मुझे लगता है कि धर्मग्रंथों में लिखा यह सब झूठ है कि वराह सुअरी से पैदा हुआ है और इस तरह की झूठ-मूठ की बातें शास्त्रों में लिखते समय उन ग्रंथकारों को लज्जा भी नहीं आई होगी?


जोतीराव : यह कैसी बेतुकी बात है कि तुम्हारे जैसे ही लोग तरह के झूठ-मूठ के ग्रंथों की शिक्षा की वजह से ब्राह्मण-पंडा-पुरोहितों और उनकी संतानो के पाँवों को धो कर पानी भी पीते हैं। अब तुम ही बताओ, इसमें तुम निर्लज्ज हो या वे?


धोंडीराव : खैर, इन सब बातों को अब छोड़ दीजिए। आपके ही कहने के अनुसार, उस मुखिया का नाम वराह कैसे पड़ा?


जोतीराव : क्योंकि उसका स्वभाव, उसका आचार-व्यवहार, उसका रहन-सहन बहुत ही गंदा था और वहा जहाँ भी जाता था, वही जंगली सुअर की तरह झपट्टा मार कर अपना कार्य सिद्ध करता था। इसी की वजह से महाप्रतापी हिरण्यगर्भ और हिरण्यकश्यप नाम के जो दो क्षत्रिय थे, उन्होंने उसका नाम अपनी निषेध की भावना व्यक्त करने के लिए सुअर अर्थात वराह रखा। इससे वह और बौखला गया होगा और उसने अपने मन में उनके प्रतिशोध की भावना रखते हुए उनके प्रदेशों पर बार-बार हमले करके, वहाँ के सभी क्षेत्रवासियों को तकलीफें दे करके, अंत में उसने एक युद्ध में (हिरण्याक्ष) हिरण्यगर्भ को मार डाला। इसका परिणाम यह हुआ कि देश के सभी क्षेत्रपतियों में घबराहट पैदा हो गई और वे कुछ लड़खड़ाने लगे और इसी समय वराह मर गया।


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