मेरी हो जानता हू कविता

 मेरी ही हो

जानता हूँ

फिर भी

भय पालता हूँ ।

खोने का डर

किसे ना होता

मैं तो अनाड़ी

डर पालता हूँ ।

रुक रूक कर

तुझे निहारता

शायद यही कर्म

मैं पालता हूँ ।

इर्द गिर्द रहता

हर पल महकता

तेरे करीब ही

खुद को पालता हूँ ।

प्रेम की चाैखट

पर रुका हूँ स्थिर

खुद को तुझसे 

संवारता हूँ ।

मेरी रानी तू सिर्फ

मेरी है मै जानता हूँ

#Skg

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