थाक एक दो
धाक एक-दो पे नहीं,
मेरी सैंकड़ों में थी !
और गिनती भी मेरी शहर
के बड़ों-बड़ों में थी ।
दफ़्न छःफ़ीट के गड्ढे में
कर दिया मुझको !
जब कि ज़मीन मेरे नाम
तो एकड़ों में थी ।।
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