प्रेेणदायक कहानियां

 👉 *'सफल जीवन'*


*एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा-*

*गुरुदेव ये 'सफल जीवन' क्या होता है?*


गुरु शिष्य को पतंग उड़ाने ले गए।

शिष्य गुरु को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था.


*थोड़ी देर बाद शिष्य बोला-*


*गुरुदेव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें? ये और ऊपर चली जाएगी।*


गुरु ने धागा तोड़ दिया ..


पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...


*तब गुरु ने शिष्य को जीवन का दर्शन समझाया...*

बेटे..  'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..

हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे :

-घर-परिवार हो-

   माता-पिता हो-

       बिरादरी हो-

         गुरु हो-

          मित्र हो-

           अनुशासन-

             समाज हो-

              संगठन ,इत्यादि

*और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...*


वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..


*इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'*


अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."


*धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन कहते हैं.."* 

        प्रकृति ने सब जीवों को बुद्धि दी हैं, सामाजिक व कल्याणकारी मूल्यों की उपेक्षा करने से व्यक्ति को कुछ भी हासिल नही होने वाला वह पतंग की तरह हैं समाज रूपी व नैतिक मूल्यों रूपी डोर से बंधा हैं। दीर्घ सकारात्मक सोच व ज्ञान की बत्ती जलाएं।  समाज से अपेक्षा की जाती हैं उपेक्षा नही। अहंकार मूर्खो का परिचय कराता हैं। समाज को भी प्रत्येक व्यक्ति से अपेक्षा रहती हैं।

समाज की अपेक्षाओं पर

भी हरेक व्यक्ति को खड़ा उतरना होता हैं। जिसने भी

समाज की अपेक्षाओं व इच्छाओं पर पानी फेरा समझो वह केवल मात्र कटी पतंग हैं।


 जय जवान,जय किसान,जय विज्ञान, जय संविधान।

 🙏

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट