तालिबान

 यह कोई कविता नहीं है

गीता और गीता है

बस आज की तरह है

ख्याति राज्य भी है

रोग भी है

वो जीत जाहिल हैं

ये शातिर हैं

वो सरम कत्ल

ये शुभचिंतक हैं

उजाड़ा है

देश भी देश को खोखला है।।

✍️ सुनिल कुमार

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