गवार कहता है
*तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है,
और तू मेरे *#गांव* को *गँवार* कहता है ??
*ऐ #शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है
तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है ??
*थक* गया है हर *शख़्स* काम करते करते
तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है ??
*गांव* चलो *वक्त ही #वक्त* है सबके पास
तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है ??
*मौन* होकर *फोन* पर *#रिश्ते* निभाए जा रहे हैं
तू इस *मशीनी दौर* को *परिवार* कहता है ??
जिनकी *सेवा* में *खपा* देते थे जीवन सारा,
तू उन *#माँ बाप* को अब *भार* कहता है ??
*वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे,
तू *दस्तूर* निभाने को *#रिश्तेदार* कहता है ??
बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें*
तू अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार* कहता है ??
बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाड़ी* में
पूरा *#परिवार* भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है ??
अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं
तू इस *नये दौर* को *#संस्कार* कहता है ??
#Skg
Yh
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